Tuesday, April 23, 2013

श्री चित्रगुप्त जी की आरती                                   


ॐ जय चित्रगुप्त हरे , स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।
भक्त जनों के इच्छित फल को पूर्ण करे।।  ॐ जय ....।

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता , संतन सुखदाई।
भक्तन के प्रतिपालक , त्रिभुवन यश छाई।।  ॐ जय ....।

रूप चतुर्भुज , श्यामल मुरति , पीताम्बर साजे।
मातु इरावती दक्षिणा , बम अंग साजे।।  ॐ जय ....।

कष्ट निवारण , दुष्ट संहारण , प्रभु अन्तर्यामी।
सृष्टि सम्हारण , जन दुःख हारण , प्रकट हुए स्वामी।।  ॐ जय ....।।

कलम दवात तलवार पत्रिका कर में अति सोहे।
वैजन्ती वन माला , त्रिभुवन मन मोहे।।  ॐ जय ....।।

सिंहासन का कार्य सम्हाला , ब्रह्मा हरषाए।
तैतीस कोटि देवता , चरनन में धाये।  ॐ जय ....।।

नृपति सौदास , भीष्म पितामह याद  तुम्हे कीना।
वेगि विलम्ब न लायो , इच्छित फल दीन्हा।।  ॐ जय ....।।

दारा , सूत , भगिनी सब स्वारथ के कर्ता।
जाऊं कहाँ शरण में , तू तज मैं भर्ता।।  ॐ जय ....।।

बन्धु पिता तुम स्वामी, शरण गहुँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा , आस करूँ जिसकी।।  ॐ जय ....।।

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती निष् दिन नित गाये।
चौरासी के छूटे बन्धन , इच्छित फल पाये।।  ॐ जय ....।।

न्यायाधीश बैकुंठ निवासी , पाप - पुण्य लिखते।
हम हैं शरण तुम्हारी , आस दूजी करते।। ॐ जय ....।।
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